आदित्य-एल 1 उपग्रह मिशन | ISRO ADITYA L1 Solar mission
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा किए गए मंगलयान परीक्षण के सफलतापूर्वक सफल होने के बाद अब इसरो की अगली नजर सूरज पर है. जी हां इसरो का जो अगला मिशन है वो सूरज से जुड़े रहस्यों को पता करने का है. ‘आदित्य-एल 1’ नामक इस मिशन के द्वारा इसरो एक उपग्रह की मदद से सूरज पर आने वाले सालों पर अध्ययन करेगा. पहली बार भारत द्वारा कोई इस तरह का मिशन किया जा रहा है जिसका नाता सूरज के अध्ययन से जुड़ा हुआ है. इतना ही नहीं सूरज के पास केवल अमेरिका ,यूरोप और जापान देशों द्वारा ही कोई उपग्रह अभी तक स्थापित किया गया है. यानी अगर भारत इस मिशन में सफल हो जाता है, तो उसका नाम भी इन तीन देशों के साथ शामिल हो जाएगा. आखिर क्या है भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन का ये मिशन और किस तरह की जा रही है, इस मिशन को लेकर तैयारी इसके बारे में नीचे जानकारी दी गई है.
क्या है आदित्य–एल 1 उपग्रह मिशन (what is ADITYA L1 Solar mission
आदित्य-एल 1 मिशन का पहले नाम आदित्य- 1 मिशन रखा गया था, लेकिन बाद में इसके नाम को बदल दिया गया था. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा इस उपग्रह को लेग्रांजी बिंदु के निकटम प्रभामंडल कक्षा (halo orbit) पर स्थापित करने का निर्णय लिया गया है. वहीं आने वाले समय में देखना होगा, कि इसरो अपने इस उपग्रह को आसानी से इस कक्षा पर स्थापित करने की क्या रणनीति बनाती है.
क्या होता हैं लग्रांज बिंदु (what is the lagrange point)
लग्रांज बिंदु उस बिंदु को कहते हैं जहां पर सूर्य और पृथ्वी या फिर चांद और सूर्य का गुरुताक्षण बल का प्रभाव सामान होता है. यानी अगर कोई चीज इस लग्रांज बिंदु पर होती है तो उसे ना ही सूर्य के गुरूत्वाकर्षण बल और ना ही धरती के गुरूत्वाकर्षण बल अपनी ओर खींच सकता है और वो चीज उस जगह ही रहती है. वहीं लग्रांज बिंदु L 1, L2, L3, L4, L5 प्रकार के होते हैं.
क्या है प्रभामंडल कक्षा (What is halo orbit)
आदित्य-एल 1 के तहत उपग्रह को लग्रांज बिंदु के पास प्रभामंडल कक्षा पर स्थापित करने की योजना है. प्रभामंडल कक्षा के अंदर L 1, L2, L3, बिंदु आते हैं और इन बिंदु में से L 1 बिंदु पर आदित्य को रखा जाएगा और इसी कारण इस मिशन का नाम आदित्य-1 से बदल कर आदित्य एल-1 रखा गया है. प्रभामंडल कक्षा पृथ्वी से 1.5 मिलियन किलोमीटर की दूरी पर है. वहीं L 1 उपग्रह को स्थापित करने का एक फायदा भी है. इस बिंदु पर अगर उपग्रह को सही से स्थापित किया जाता है, तो बिना किसी रुकावट या ग्रहण लगने की सूरत में भी सूरज पर नजर रखी जा सकेगी. इतना ही नहीं जहां पर आदित्य -1 मिशन के जरिए इसरो को केवल कॅरोना के बारे में अध्ययन करने वाला था, वहीं आदित्य एल-1 के तहत इसरो के अध्ययन का दायरा भी बढ़ गया है. और अब इस अध्ययन में कॅरोना के साथ-साथ सूर्य के फोटोस्फियर, क्रोमोस्फियर, प्रभामंडल और इत्यादि चीजों पर नजर रखी जा सकेगी. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के लिए ये मिशान काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है.
क्या होता है सौर कॅरोना (what is solar corona)
सूर्य का वायुमंडल कई तरह की गैसों से घिरा हुआ है. सूर्य के वायुमंडल का सबसे बाहरी भाग को कॅरोना कहा जाता है. सूर्य के उज्ज्वल प्रकाश के कारण कॅरोना को देखना असंभव सा हो जाता है. कॅरोना को केवल सौर ग्रहण के वक्त ही देखा जा सकता है क्यों इस ग्रहण के दौरान सूर्य के प्रकाश को चांद छुपा लेता है और कॉरोना आसानी से दिख जाते हैं. वहीं सौर कॅरोना के तापमान की बात करें, तो इसका तापमान लगभग 6000 डिग्री है. वहीं कॅरोना का इतना तापमान होने के पीछे का कारण इसका पता अभी तक किसी को भी नहीं है. और इसरो अपने इस मिशन के जरिए सूर्य के वायुमंडल से जुडे ऐसे सवालों का ही पता लगाने की कोशिश करेगा. इसके अलावा इसरो इलेक्ट्रॉनिक संचार में सौर-लपटों द्वारा पैदा होने वाली दिक्कतों के पीछे क्या कारण है, इसका भी पता लगाने की कोशिश करेगा.
मशीन में इस्तेमाल किए जानेवाले उपकरण (complete list of payloads of aditya L 1)
आदित्य-एल 1 मिशन के तहत स्थापित किए जाने आदित्य उपग्रह के साथ कई उपकरणों को भी पे-लोड (जो उपकरण उसमें लगे होंगे) किया जाएगा. जिनमें से पहला नाम विजिबल एमिशन लाइन कॅरोनोग्राफ (वीईएलसी) और इसे भारतीय तारा भौतिकी संस्थान (आई.आई.ए.) द्वारा बनाया जाएगा. इसकी मदद से सूर्य कॅरोना के चुंबकीय क्षेत्र इसके नैदानिक पैरामीटर की जांच की जाएंगी. दूसरा उपकरण सोलर अल्ट्रवॉयलेट इमेजिंग टेलिस्कोप होगा इसकी मदद से सौर किरणों के रूपांतरों का मापन किया जाएगा और इसे इंटर-युनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स (आईयूसीएए) द्वारा बनाया जाएगा. तीसरा जो उपकरण है उसे भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (पीआरएल) द्वारा बनाया जाएगा और इस उपकरण का नाम आदित्य सोलर विंड एक्सपेरिमेंट रखा गया है. इसके अलावा इसमें प्लाजमा एनालाइजर पैकेज उपकारण लगा होगा. सोलर एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर और हाई एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर, मैग्नेटोमीटर के नाम भी इस सूची में शामिल हैं और ये सारे उपकरण भारत द्वारा बनाएं जाएंगे.
कब भेजा जाएगा आदित्य एल-1 (Mission duration)
आदित्य- एल 1 को पीएसएलवी (एक्सएल) की मदद से एल-1 पर स्थापित किया जाएगा. इस उपग्रह का वजन 200 किलो तक होने का अनुमान लगाया जा रहा है. वहीं भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के मुताबिक साल 2019-2020 के बीच इस मिशन को अंजाम दे दिया जाएगा. वहीं इस मिशन को पूरा करने में आने वाले खर्च की बात की जाए तो भारत सरकार द्वारा इस मिशन को पूरा करने के लिए 2016-17 के वित्तीय वर्ष में 3 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया है.
निष्कर्ष (conclusion)
वैज्ञानिकों को अभी तक सूरज के वायुमंडल को लेकर कोई सारी चीजे नहीं पता है. इस मिशन से सूरज से जुड़े कई चीजों के बारे में पता लगाने की कोशिश की जाएगी. वहीं अगर भारत अपने इस मिशन में सफल हो जाता है तो इसरो के वैज्ञानिकों को सूरज से जुड़ी कई तरह की जानकारी मिल सकेंगी. इतना ही नहीं मंगल ग्रह मिशन के बाद इस मिशन के सफल होने से दुनियाभर में भारत का नाम और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन का नाम और भी ऊपर हो जाएगा. इस मिशन में जिस भी चीज का इस्तेमाल किया जा रहा है वो भारत में ही बनाई जा रही हैं.