क्या अमेरिका अपने दोस्त इसराइल से युद्ध के लिए तैयार है?

Has America decided to “look” at its friend Israel?

ये नेता इजराइल के प्रति अपनी नाराजगी जाहिर करने के लिए लगातार कठोर भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं.

इस बीच, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने गाजा पट्टी में तत्काल युद्धविराम का आह्वान करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया।

संयुक्त राज्य अमेरिका ने प्रस्ताव पर मतदान में भाग नहीं लिया, लेकिन इज़राइल इस कदम से नाखुश था।

इस कार्रवाई के जवाब में इजराइल ने अपने प्रतिनिधिमंडल की अमेरिका यात्रा रद्द कर दी. इजराइल के नाराज होने की वजह यह है कि अमेरिका ने इस प्रस्ताव पर वीटो नहीं किया.

हालाँकि, हाल के घटनाक्रमों ने निश्चित रूप से यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या अमेरिका और इज़राइल के बीच सब कुछ ठीक है, जो स्पष्ट रूप से हमेशा दोस्त रहे हैं।

अमेरिकी फैसले के मायने ( Meaning of American decision)

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के युद्धविराम प्रस्ताव को अपनाने से पता चलता है कि राष्ट्रपति बिडेन ने अब निर्णय लिया है कि केवल कड़े शब्द ही पर्याप्त नहीं हैं।

उन्होंने व्हाइट हाउस और इसराइल प्रधान मंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के बीच तनावपूर्ण स्थिति पर भी प्रकाश डाला।

नेतन्याहू ने अपने सबसे अहम सहयोगी इजराइल पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की.

उन्होंने प्रस्ताव पर वीटो न करने के लिए अमेरिका की आलोचना नहीं की. नेतन्याहू ने कहा कि यह उनके युद्ध प्रयासों और 7 अक्टूबर को हमास द्वारा बंधक बनाए गए लोगों को मुक्त कराने के प्रयासों को नुकसान पहुंचा रहा है।

जो बाइडन और उनके अन्य शीर्ष अधिकारी इस बयान को कृतघ्नता बता सकते हैं।

राष्ट्रपति बाइडन इजराइल के बेहद करीब हैं. वह खुद को ज़ायोनीवादी कहता है। 7 अक्टूबर के हमले के बाद से, उन्होंने इज़राइल के लोगों को सैन्य, राजनयिक और भावनात्मक समर्थन प्रदान किया है।

बंधकों को रिहा करने के अलावा बिडेन हमास को भी नष्ट करना चाहते हैं। लेकिन बिडेन चाहते हैं कि इज़राइल काम “सही” करे।

इसराइल को बाइडन का साथ ( Biden supports Israel)

इसराइल और हमास के बीच जंग के शुरुआती सप्ताहों में राष्ट्रपति बाइडन ने इसराइल को चेताया था कि वह बदले की आग में अंधा न बने, जैसा अमेरिका 11 सितंबर 2001 को अल-क़ायदा के हमले के बाद हुआ था.

अमेरिकी राष्ट्रपति ने हमास के हमले के बाद इसराइल का दौरा किया और सभी पीड़ितों के परिवार से मिले और नेतन्याहू को गले लगाया. यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि नेतन्याहू के साथ बाइडन के रिश्ते कभी उतने आसान नहीं रहे.

जो बाइडन और सात अक्टूबर के बाद से अब तक सात बार इसराइल जा चुके अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन, लगातार इसराइल से अंतरराष्ट्रीय मानवीय क़ानूनों का सम्मान करने को कह रहे हैं, जिसमें आम लोगों की सुरक्षा का कर्तव्य भी शामिल है.

युद्ध की शुरुआत में इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने अपने देश की जनता से वादा किया कि वे हमास के हमले का ‘बदला’ लेंगे.

तब से अब तक इसराइल के हमलों में 30 हज़ार से अधिक फ़लस्तीनियों की मौत हो चुकी है, जिनमें अधिकांश आम लोग थे. इसराइल ने जिन हथियारों से हमले किए, उनमें से अधिकतर अमेरिका के ही दिए हुए थे.

बाइडन की नाराज़गी की वजह? ( Reason for Biden’s anger)

ग़ज़ा में बर्बादी, फ़लस्तीन के लोगों पर बढ़ते भुखमरी के ख़तरे और दक्षिणी ग़ज़ा के रफ़ाह में इसराइली कार्रवाई में और मौतों की आशंका को देखते हुए, ये माना जा रहा है कि राष्ट्रपति बाइडन ने ये मान लिया है कि अब इसराइल ने उनकी सलाह को नज़रअंदाज़ करने की सीमा पार कर दी है.

इसराइल ये दावा करता है कि उसने युद्ध के कानूनों का हमेशा पालन किया है. इसराइल ने ग़ज़ा के लोगों के लिए मानवीय सहायता को रोकने के आरोपों को भी ख़ारिज किया है.

लेकिन अब ऐसे सबूतों का अंबार लग गया है जो ये बताते हैं कि इसराइल सच नहीं कह रहा. इसराइल और मिस्र में मौजूद खाने-पीने के भंडारों से महज़ कुछ किलोमीटर दूर छोटे-छोटे बच्चे भूख से दम तोड़ रहे हैं.

अमेरिकी और बाकी दुनिया संयुक्त राष्ट्र और अन्य सहायता एजेंसियों की ओर से पेश किए गए उन सबूतों को देख सकते हैं, जिसके अनुसार ग़ज़ा भुखमरी की कगार पर खड़ा है.

अमेरिकी सेना ये मदद एयरड्रॉप कर रही है, वहीं ज़रूरी सामानों की आपूर्ति समुद्र के रास्ते ग़ज़ा तक की गई है. जबकि इसराइल उत्तरी ग़ज़ा से आधे घंटे की दूरी पर स्थित अशदोद पोर्ट से बहुत कम मात्रा में ये मदद आगे जाने दे रहा है.

अपनी छवि सुधारने की कोशिश? ( Trying to improve your image)

इसराइली कार्रवाई में अब तक 30 हज़ार से अधिक फ़लस्तीनियों की जान जा चुकी है

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कई असफल कोशिशों के बाद सोमवार को ग़ज़ा में युद्धविराम की मांग वाला प्रस्ताव पास हो गया. ये प्रस्ताव इसलिए पारित हो सका क्योंकि अमेरिका ने इसे वीटो नहीं किया, जो पूर्व में अपनाए उसके रुख से अलग था.

अमेरिका ने सोमवार को हुए मतदान में भाग भी नहीं लिया. यह प्रस्ताव चीन लेकर ​लाया था.

लेकिन इसराइल की नाराज़गी का कारण इस प्रस्ताव पर हुए मतदान में अमेरिका का वीटो न लगाना रहा.

हालांकि व्हाइट हाउस ने कहा है कि मतदान प्रक्रिया में भाग न लेना, अमेरिका की नीति में बदलाव होना नहीं है.

व्हाइट हाउस के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने यह भी कहा कि अमेरिका इसराइल से उसके इस फैसले पर बात करेगा.

रमज़ान सीज़फ़ायर रिज़ॉल्यूशन पर वीटो न करने से अमेरिका ने इसराइल की गतिविधियों के लिए ख़ुद को ज़िम्मेदार ठहराए जाने संबंधी आरोपों से छुटकारा पाने की कोशिश की है.

बाइडन प्रशासन की ओर से मध्य पूर्व के इस संकट का हल निकालने के प्रस्ताव को बिन्यामिन नेतन्याहू द्वारा ठुकराए जाने के बाद सुरक्षा परिषद में अमेरिका ने ये फ़ैसला किया है.

अमेरिकी ये दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि अंतरराष्ट्रीय दबाव से इसराइल को मिली छूट की भी एक सीमा है.

आमतौर पर ये माना जाता है कि सुरक्षा परिषद से पास हुए प्रस्ताव अंतरराष्ट्रीय कानूनों के प्रति बाध्य होते हैं. अब इसराइल को ये तय करना होगा कि वह इस प्रस्ताव का सम्मान करेगा या नहीं, जिसका हमास और यूएन में फ़लस्तीनी प्रतिनिधियों ने स्वागत किया है.

नेतन्याहू की गठबंधन सरकार यहूदी धुर राष्ट्रवादी चरमपंथियों के समर्थन पर निर्भर है, जो नेतन्याहू से प्रस्ताव को नज़रअंदाज़ करने के लिए कहेंगे. अगर नेतन्याहू ऐसा करते हैं तो अमेरिका को जवाब देना पड़ेगा.