इस समाज में रावण को भगवान की तरह पूजा जाता हैं , नहीं जलाते हैं उसका पुतला,

In this society Ravana is worshiped like a god, his effigy is not burnt.


हरिकांत शर्मा/आगरा:आज संपूर्ण देश में बुराई पर अच्छाई की जीत दशहरा पर्व मनाया जाएगा.जगह-जगह लोग बुराई के प्रतीक माने जाने वाले रावण के पुतले का दहन करेंगे. लेकिन आगरा में सारस्वत ब्राह्मणों की रावण को लेकर अलग ही मान्यता है. रावण को लोग अपना वंशज मानते हैं. दशहरा के दिन सारस्वत ब्राह्मण रावण के पुतले का दहन नहीं करते बल्कि रावण की पूजा करते हैं. बाकायदा रावण के स्वरूप में शिव तांडव स्त्रोत का पाठ किया जाता है. ये लोग कई सालों से रावण के पुतला दहन का विरोध कर रहे हैं . रावण के पुतला दहन न करने के पीछे इन लोगों का मानना है कि रावण एक विद्वान पंडित था. वह हमारे वंशज है और हिंदू मान्यताओं के अनुसार किसी भी व्यक्ति का दाह संस्कार सिर्फ एक बार किया जाता है.

लंकापति दशानन महाराज पूजा समिति के डॉक्टर मदन मोहन शर्मा ने स्वयं दशानन कर भेष रखा और भगवान शिव की शिव तांडव स्त्रोत से प्रार्थना की. इस शिव तांडव स्त्रोत की रचना स्वयं रावण ने की थी. मदन मोहन शर्मा ने बताया कि भगवान विष्णु की हर लीला पूर्व विदित होती है. लोगों को संदेश देने के लिए रामलीला का इस धरा पर मंचन हुआ. भगवान राम ने सारस्वत ब्राह्मण रावण को महा ज्ञानी बताते हुए लक्ष्मण को उनसे गुरु दीक्षा लेने के लिए भेजा. लंका में काफी समय तक माता सीता के रहने के बाद भी रावण ने कभी उनके चरणों से ऊपर नजर नहीं उठाई. उन्होंने सीता का हरण अपनी बहन के अपमान का बदला लेने के लिए और भाई धर्म निभाने के लिए किया था.

जीवन में रावण से लेनी चाहिए सिख


रावण ऐसे महान ज्ञानी थे. जिन्होंने खुद का नाम तो अमर किया. साथ ही अपने एक लाख पुत्रों और सवा लाख नातियों को साक्षात विष्णु भगवान, शेषनाग और रुद्र अवतार बजरंगबली समेत तमाम देवों और राम की सेना बनी संत आत्माओं के हाथों बैकुंठ सागर पार करवा दिया. ऐसे महा प्रतापी की पूजा होनी चाहिए और उनके जीवन से सीख लेनी चाहिए.

ना हो रावण के पुतले का दहन


सारस्वत समाज का कहना है कि पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने और एक महान ब्राह्मण का अपमान करने से बचने के लिए रावण दहन का बहिष्कार करना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि हिंदू सभ्यता में किसी का एक बार दाह संस्कार होने के बाद दोबारा दाह संस्कार नहीं किया जाता. कार्यक्रम में स्वरूप में मौजूद रहे आनंद जोशी का दशानन का स्वरूप धारण किए हुए डॉ मदन मोहन शर्मा ने शिव तांडव स्त्रोत का पाठ कर पूजा अर्चना की. साथ ही यह भी अपील की, पर्यावरण को बचाने के लिए दशानन के पुतलों का दहन ना हो, अपनी आस्था के अनुसार दशहरा मनाया जाए. लेकिन किसी पुतले का दहन ना हो इससे पर्यावरण को भी फायदा पहुंचेगा.